बिहार वोटर लिस्ट विवाद: सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई, विपक्ष का विरोध और EC का स्पष्टीकरण – जानिए पूरा मामला
बिहार में वोटर लिस्ट संशोधन को लेकर गहराया विवाद, सुप्रीम कोर्ट ने उठाए गंभीर सवाल। विपक्ष ने लगाया चुनावी हेरफेर का आरोप। जानिए EC का पक्ष, तेजस्वी-राहुल का हमला और सीमांचल की जमीनी हकीकत।

बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची को लेकर नया विवाद उभर आया है। वोटर लिस्ट में भारी पैमाने पर संशोधन के तहत विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) प्रक्रिया शुरू की गई है, जिसे लेकर पूरे राज्य में राजनीतिक और सामाजिक बहस तेज हो गई है।
राजनीतिक गलियारों में इसे 2025 के विधानसभा चुनावों से पहले रणनीतिक मोड़ बताया जा रहा है। जिन जिलों में पहले से ही सामाजिक असमानता और बुनियादी सुविधाओं की कमी रही है, जैसे सीमांचल, वहां की जनता के बीच संशय और आक्रोश देखने को मिल रहा है।
सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया
देश की सर्वोच्च अदालत ने यह स्पष्ट किया कि मतदाता सूची सुधार प्रक्रिया अपने आप में असंवैधानिक नहीं है, लेकिन इसे चुनाव के ठीक पहले लागू करने के पीछे की मंशा पर सवाल उठाए जा सकते हैं। अदालत ने चुनाव आयोग से यह भी स्पष्ट करने को कहा है कि दस्तावेजों के चयन में एकरूपता क्यों नहीं है।
इस मुद्दे पर देशभर में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं, नागरिक अधिकारों और संविधानिक मूल्यों को लेकर व्यापक चर्चा हो रही है।
विपक्ष की तीव्र प्रतिक्रिया
राजनीतिक विपक्ष, खासकर कांग्रेस और राजद ने इस पूरी प्रक्रिया को जनता के अधिकारों पर हमला करार दिया है। राहुल गांधी ने इसे “लोकतांत्रिक ढांचे के साथ छेड़छाड़” बताया, वहीं तेजस्वी यादव ने इसे सामाजिक न्याय की जड़ों को कमजोर करने वाली नीति कहा। इन नेताओं ने पटना में हुए विरोध प्रदर्शन में भीड़ के ज़रिए यह दिखाने की कोशिश की कि बिहार के लोगों को अपनी पहचान और अधिकारों को लेकर चिंता है।
सामाजिक संगठनों ने भी यह सवाल उठाया है कि बिहार जैसे राज्य में, जहां हर पंचायत में तकनीकी सुविधाएं और डॉक्यूमेंट्स की उपलब्धता असमान है, वहां एक ही मानक कैसे लागू किया जा सकता है?
ज़मीनी स्थिति – सीमांचल से शहरी इलाकों तक
ग्रामीण और सीमावर्ती जिलों में मतदाताओं को बूथ लेवल अधिकारियों के साथ समन्वय करने में कठिनाइयाँ हो रही हैं। कई मामलों में दस्तावेजों की मांग में असमानता पाई गई है। उदाहरण के तौर पर, सीमांचल के कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहां आधार कार्ड को अमान्य बताया जा रहा है, जबकि शहरी केंद्रों में वही दस्तावेज स्वीकार किया जा रहा है।
ऐसी स्थितियाँ 2025 के चुनावों की पारदर्शिता को लेकर लोगों के मन में सवाल खड़े कर रही हैं। राज्य की राजनीति में बार-बार यह मुद्दा उठता रहा है कि वोटर लिस्ट में हेरफेर के ज़रिए जनादेश को प्रभावित करने की कोशिश की जाती है।
चुनाव आयोग का पक्ष
भारत निर्वाचन आयोग ने अपने जवाब में कहा कि यह संपूर्ण प्रक्रिया संविधान और प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के अनुरूप है। आयोग के अनुसार, सूची का अद्यतन समय-समय पर आवश्यक होता है ताकि मृत, स्थानांतरित या अपात्र मतदाताओं को हटाया जा सके और नए मतदाताओं को जोड़ा जा सके।
आयोग ने यह भी कहा कि दस्तावेजों की सूची में लचीलापन लाया जा सकता है, जिसमें वोटर ID, राशन कार्ड, बैंक पासबुक जैसी सामान्य पहचान को शामिल किया जा सकता है।
निष्कर्ष
बिहार में वोटर लिस्ट को लेकर चल रही यह बहस न सिर्फ राज्य की राजनीति को प्रभावित कर रही है, बल्कि इससे राष्ट्रीय स्तर पर मतदाता अधिकार, लोकतंत्र की संरचना और चुनावी पारदर्शिता को लेकर नई बहस छिड़ गई है।
28 जुलाई को होने वाली अगली सुनवाई में यह साफ हो सकेगा कि चुनाव आयोग को किस स्तर पर पारदर्शिता और समानता सुनिश्चित करनी होगी।