उदयपुर का हरियाली अमावस्या मेला 24–25 जुलाई: 750 स्टॉल, 535 नीलाम, 215 मौके पर आवंटित

उदयपुर में आयोजित देश-भर में प्रसिद्ध हरियाली अमावस्या मेला इस वर्ष 24 व 25 जुलाई को सहेलियों की बाड़ी व फतहसागर घाट पर संपन्न होगा। 21–22 जुलाई को मेले में लगने वाले कुल 750 स्टॉल्स की नीलामी की गई, जिसमें से 535 स्टॉल्स नीलाम हुए और शेष 215 स्टॉल ऑन-स्पॉट आवंटित किए जाने का निर्णय लिया गया । पहले दिन की नीलामी में 393 स्टॉल्स से निगम को लगभग ₹13.18 लाख की आमदनी हुई । नगर निगम आयुक्त अभिषेक खन्ना ने अधिकारियों के साथ बैठक कर सुरक्षा व आयोजन व्यवस्था को अंतिम रूप दिया है; मेले के पहले दिन सभी के लिए खुले रहने की व्यवस्था है, जबकि दूसरे दिन केवल महिलाओं के प्रवेश की परंपरा बरकरार रहेगी । इस ऐतिहासिक मेले में पारंपरिक झूले, सांस्कृतिक कार्यक्रम, स्थानीय खाने-पीने की स्टॉल, बच्चों के लिए मनोरंजन एवं हरेक उम्र के लिए आकर्षण रहेगा।

उदयपुर का हरियाली अमावस्या मेला 24–25 जुलाई: 750 स्टॉल, 535 नीलाम, 215 मौके पर आवंटित

उदयपुर | 24 जुलाई 2025 

 उदयपुर नगर निगम द्वारा आयोजित हरियाली अमावस्या मेला इस बार 24 और 25 जुलाई 2025 को सहेलियों की बाड़ी से फतहसागर तक फैले क्षेत्र में आयोजित किया जाएगा। मेले के संचालन के लिए कुल 750 स्टॉल्स की व्यवस्था की गई है, जिनमें से राजस्व शाखा द्वारा 535 की नीलामी पहले ही संपन्न कर ली गई है, जिससे निगम को अच्छी-खासी आमदनी हुई है। शेष 215 दुकानों का आवंटन मेले के स्थान पर सीधे किया जाएगा, जिससे स्थानीय व अस्थाई व्यापारियों को भी हिस्सा लेने का अवसर मिलेगा 

नगर निगम आयुक्त अभिषेक खन्ना की अध्यक्षता में 19 जुलाई 2025 को एक बैठक आयोजित की गई थी, जिसमें स्टॉल्स, झूले और सुरक्षा कार्यों की विस्तृत रूपरेखा तय की गई । निगम ने यह भी निर्णय लिया है कि मेले का पहला दिन सभी के लिए खुला रहेगा, लेकिन दूसरे दिन सिर्फ महिलाओं के प्रवेश की व्यवस्था होगी, जिससे यह उत्सव महिलाओं के लिए विशेषरोop से समर्पित होगा । इसके अतिरिक्त, प्रदर्शनी क्षेत्र में झूलों की नीलामी भी आयोजित की गई है, जिससे निगम को अतिरिक्त ₹1.16 लाख का राजस्व प्राप्त हुआ

मेला स्थल पर प्रमुख सांस्कृतिक कार्यक्रम जैसे कालबेलिया, घूमर, राजस्थानी और ‘13 ताल’ नृत्य होंगे, जिनके लिए मंच की ऊँचाई पर विशेष ध्यान दिया गया है – मंच की ऊंचाई इस वर्ष भी दूसरी ऊँचाई से दर्शकों तक अच्छी दृश्यता सुनिश्चित करेगी। अतिरिक्त रूप से, नगर निगम ने पुलिस प्रशासन और होमगार्ड जवानों को तैनात कर सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता की है

इस मेले की खास बात यह है कि यह सिर्फ एक बाजार नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और सामाजिक मिलन स्थल भी है: यहां खाने-पीने के स्टॉल्स, झूले, पारंपरिक लोक कला और संगीत का सुंदर मिश्रण देखने को मिलेगा। मेले की शुरुआत महाराणा फतेह सिंह के काल में हुई थी, जब पानी के संरक्षण के प्रयासों के अंतर्गत इस मेले के आयोजन की शुरुआत हुई – और आज भी यह प्रदर्शनी पारंपरिक स्वरूप में ही आयोजित की जा रही है