अन्नपूर्णा बेस कैंप फतह कर उदयपुर के गोविंद खारोल’ने रचा इतिहास*

सपनों को ऊंचाइयों तक ले जाने वाला हौसला: ‘बिंदास गोविंद खारोल’ ने अन्नपूर्णा बेस कैंप फतह कर रचा इतिहास*

*सपनों को ऊंचाइयों तक ले जाने वाला हौसला: ‘बिंदास गोविंद खारोल’ ने अन्नपूर्णा बेस कैंप फतह कर रचा इतिहास*

“अगर इरादे मजबूत हों तो रास्ते अपने आप बन जाते हैं।”
उदयपुर के ‘बिंदास गोविंद खारोल’ ने इस कथन को एक बार फिर सच कर दिखाया है। दिव्यांग होते हुए भी गोविंद ने अपनी मेहनत, जज्बे और आत्मविश्वास से वह कर दिखाया जो कई सामान्य लोग भी सोचने से डरते हैं। हाल ही में गोविंद ने नेपाल स्थित *अन्नपूर्णा बेस कैंप (4,130 मीटर / 13,550 फीट)* की कठिन चढ़ाई को पूरा किया — भारत के सबसे बड़े समावेशी हिमालयन ट्रेक का हिस्सा बनकर।

यह साहसिक यात्रा *टिंकेश एबिलिटी फाउंडेशन (TAF) और अद्वैत आउटडोर्स* के सहयोग से 13 से 24 अप्रैल, 2025 के बीच आयोजित हुई। इस अनूठे ट्रेक में भारत भर से आए छह दिव्यांग प्रतिभागियों और नौ सामान्य प्रतिभागियों ने एकजुट होकर लगभग 75 किलोमीटर की चुनौतीपूर्ण दूरी तय की। पूरे ट्रेक के दौरान टीम ने दुनिया को यह शक्तिशाली संदेश दिया: *“दिव्यांगता कभी भी सपनों की उड़ान को रोक नहीं सकती।”*

*गोविंद खारोल की प्रेरणादायक यात्राएँ*

यह गोविंद की पहली उपलब्धि नहीं है। उन्होंने इससे पहले भी कई अद्भुत साहसिक अभियानों को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है:
 • *उदयपुर से बेंगलुरु* तक की *1,800 किलोमीटर* की एकल साइकिल यात्रा को मात्र *18 दिनों* में पूरा किया।
 • *मनाली से खारदुंगला* पास तक (दुनिया का सबसे ऊंचा मोटरेबल रोड - 18,550 फीट) साइक्लिंग करते हुए *550 किलोमीटर* की कठिन यात्रा 10 दिनों में पूरी की।
 • *विश्व की सबसे लंबी रिले दौड़ — 9,500 किलोमीटर* — को *40 दिनों* में सफलतापूर्वक पूरा किया।
 • देश के प्रमुख मैराथन जैसे *मुंबई मैराथन, दिल्ली मैराथन* सहित कई प्रतियोगिताओं में भाग लेकर अपनी फिटनेस और जज्बे का परिचय दिया।

• हिमाचल प्रदेश की कठिन *श्रीखंड महादेव कैलाश यात्रा* (5,227 मीटर / 17,150 फीट) को भी सफलता पूर्वक पूरा किया।
 • हाल ही में नेपाल के पोखरा में *दुनिया की सबसे ऊंची स्विंग — 228 मीटर* ऊंचाई से — का भी अनुभव किया। गोविंद के अनुसार,
“यह एक रोमांचक और साहसिक अनुभव था, जिसने मुझे खुद को एक नई ऊंचाई पर परखने का मौका दिया।”

गोविंद न केवल एक पैशनेट *मैराथन धावक,पर्वतारोही और साइक्लिस्ट*  हैं, बल्कि वे ‘बिंदास फाउंडेशन’ (Bindaas Foundation) के संस्थापक भी हैं जो ट्रेकिंग, कैंपिंग, साइक्लिंग मैराथन और सामुदायिक एकत्रीकरण कार्यक्रमों का आयोजन करती है। उनका उद्देश्य है लोगों को प्रकृति से जोड़ना, फिटनेस को जीवनशैली का हिस्सा बनाना और एक समावेशी तथा जागरूक समाज बनाना।

*धन्यवाद और आभार*

गोविंद ने अन्नपूर्णा बेस कैंप ट्रेक की सफलता के बाद कहा,

*“मैं दिल से हर उस व्यक्ति का आभार प्रकट करता हूँ जिन्होंने इस यात्रा में मेरा हौसला बढ़ाया और मेरा साथ दिया। विशेष रूप से मैं टिंकेश एबिलिटी फाउंडेशन का धन्यवाद करता हूँ, जिन्होंने इतना सुंदर और समावेशी ट्रेक आयोजित कर हम जैसे सपने देखने वालों को नई ऊंचाइयों तक पहुंचने का अवसर दिया।”*

गोविंद खरोल की कहानी हमें यह सिखाती है कि
*“सपनों की कोई सीमा नहीं होती — हौसले बुलंद हों तो कोई रास्ता कठिन नहीं होता।”*
उनकी हर एक उपलब्धि सिर्फ उनकी नहीं, बल्कि उन सभी के लिए एक प्रेरणा है जो खुद पर विश्वास रखते हैं और अपने सपनों को जीना चाहते हैं।