करणी माता मंदिर की ऐतिहासिक बावड़ी पर अतिक्रमण का संकट: विरासत को बचाने की पुकार

उदयपुर के करणी माता मंदिर की ऐतिहासिक बावड़ी अतिक्रमण और कचरे की चपेट में। श्रद्धालुओं ने उठाई आवाज, प्रशासन से संरक्षण की मांग। जानिए पूरा मामला।

उदयपुर | हाथीपोल क्षेत्र
राजस्थान के उदयपुर शहर में स्थित प्राचीन करणी माता मंदिर की ऐतिहासिक बावड़ी इन दिनों अतिक्रमण, अव्यवस्था और प्रशासनिक उदासीनता की शिकार होती नजर आ रही है। इस बावड़ी ने कभी क्षेत्र में जल प्रबंधन और धार्मिक आस्था के संगम का उदाहरण पेश किया था, परंतु आज यह अस्तित्व के संकट से गुजर रही है।

स्थानीय नागरिकों, श्रद्धालुओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा मंदिर परिसर में हो रहे अवैध निर्माण और असंवेदनशील व्यावसायिक गतिविधियों के विरुद्ध आवाज़ उठाई गई है। सोशल मीडिया और ज़मीनी स्तर पर विरोध के स्वर तेज हो चुके हैं, जिसमें प्रशासन से इस धरोहर को संरक्षित करने की मांग की जा रही है।

करणी माता मंदिर और बावड़ी का सांस्कृतिक महत्व

उदयपुर के हृदय में स्थित हाथीपोल क्षेत्र का करणी माता मंदिर न केवल धार्मिक श्रद्धा का केंद्र है, बल्कि इसके भीतर स्थित बावड़ी स्थापत्य, जल संरक्षण और सांस्कृतिक चेतना का भी प्रतीक है। वर्षों पूर्व यह बावड़ी स्थानीय निवासियों के लिए जल स्रोत रही, जहां धार्मिक अनुष्ठान और सामाजिक समागम होते थे। आज भी यह स्थल पुरखों की यादों और परंपराओं को संजोए हुए है।

क्या है अतिक्रमण की स्थिति?

स्थानीय निवासियों के अनुसार, मंदिर परिसर के पास कुछ व्यावसायिक गतिविधियों और अवैध निर्माणों ने बावड़ी के मूल स्वरूप को नष्ट करना शुरू कर दिया है।

  • कचरे के ढेर

  • निर्माण सामग्री का जमा होना

  • अवैध दीवारें और सीमाओं का अतिक्रमण

  • धार्मिक मर्यादाओं की अनदेखी

हाल ही में कुछ तस्वीरें और वीडियो वायरल हुए हैं, जिनमें स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि मंदिर के निकट एक निर्माण कार्य चल रहा है, जो परिसर की परिधि में आता है। यह दृश्य क्षेत्रीय लोगों के आक्रोश का कारण बन गया है।

जनता की आवाज

स्थानीय नागरिकों और श्रद्धालुओं का कहना है कि यह केवल एक बावड़ी नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक पहचान और विरासत है।

- "अगर हमने अभी भी ध्यान नहीं दिया तो आने वाली पीढ़ियों के लिए कुछ नहीं बचेगा।"
- "धार्मिक स्थलों के साथ ऐसी लापरवाही माफ नहीं की जा सकती। ये आस्था के केंद्र हैं, न कि व्यावसायिक भूखंड।"


प्रशासन से प्रमुख मांगें

जनता और सामाजिक संगठनों द्वारा प्रशासन और नगर निगम से निम्नलिखित कदम उठाने की अपील की जा रही है:
 - अतिक्रमण की निष्पक्ष जांच और त्वरित कार्यवाही
 - पुरातत्व विभाग की निगरानी में बावड़ी का संरक्षण और पुनरुद्धार
 - मंदिर परिसर को धार्मिक-सांस्कृतिक विरासत स्थल घोषित करना
 - संरक्षित क्षेत्र के रूप में CCTV निगरानी और चेतावनी बोर्ड की व्यवस्था

हमारी साझी जिम्मेदारी

केवल प्रशासन से उम्मीद करना पर्याप्त नहीं है। हर नागरिक की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने क्षेत्र की धरोहरों की रक्षा में भागीदार बने।
धरोहरें तभी बचेंगी जब हम जागरूकता के साथ संरक्षण को अपनी प्राथमिकता बनाएंगे।

"धरोहर बचाओ - आस्था बचाओ" अभियान जल्द होगा प्रारंभ

सामाजिक संगठनों और स्थानीय युवाओं द्वारा "धरोहर बचाओ - आस्था बचाओ" नामक एक अभियान शुरू करने की योजना है, जिसमें जन-जागरूकता, स्वच्छता अभियान, जन समर्थन अभियान और प्रशासन तक सामूहिक ज्ञापन शामिल होंगे।

यदि आप भी इस आंदोलन का हिस्सा बनना चाहते हैं, तो आगे आइए और अपनी विरासत की रक्षा के लिए कदम बढ़ाइए।