शिल्पग्राम उत्सव उदयपुर में राठवा लोक नृत्य की धमक, गुजरात की आदिवासी संस्कृति का अनूठा रंग

पश्चिम क्षेत्र संस्कृति केंद्र उदयपुर द्वारा आयोजित शिल्पग्राम उत्सव में गुजरात के प्रसिद्ध राठवा आदिवासी लोक नृत्य की भव्य प्रस्तुति। लय-ताल, साहसिक करतब और पारंपरिक वेशभूषा से सजी यादगार शाम।

शिल्पग्राम उत्सव उदयपुर में राठवा लोक नृत्य की धमक, गुजरात की आदिवासी संस्कृति का अनूठा रंग

शिल्पग्राम उत्सव में छाएगा गुजरात के ‘राठवा’ लोक नृत्य का जादू

लय-ताल, रोमांचक करतब और अद्भुत संतुलन से दर्शकों को करेगा मंत्रमुग्ध

उदयपुर, 22 दिसंबर।
पश्चिम क्षेत्र संस्कृति केंद्र, उदयपुर द्वारा आयोजित हो रहे शिल्पग्राम उत्सव में मंगलवार की शाम मुक्ताकाशी मंच पर गुजरात के प्रसिद्ध आदिवासी लोक नृत्य ‘राठवा’ की धमक देखने को मिलेगी। यह नृत्य अपनी तेज गति, साहसिक करतबों और अद्भुत संतुलन के लिए जाना जाता है, जो दर्शकों को एक पल के लिए भी आंखें झपकाने का मौका नहीं देता।

गुजरात के छोटा उदेपुर जिले से आए राठवा नृत्य दल के कलाकार अपने पारंपरिक अंदाज में जब मंच पर उतरेंगे, तो शिल्पग्राम उत्सव की शाम रोमांच और उत्साह से भर उठेगी। यह नृत्य न सिर्फ मनोरंजन करता है, बल्कि आदिवासी संस्कृति की जीवंत झलक भी प्रस्तुत करता है। 

राठवा जनजाति की सांस्कृतिक पहचान

डांस ग्रुप के लीडर रंगू भाई राठवा बताते हैं कि राठवा गुजरात की एक प्रमुख आदिवासी जनजाति है, जो मुख्य रूप से छोटा उदेपुर जिले के विभिन्न गांवों में निवास करती है। इस जनजाति का पारंपरिक लोक नृत्य ही ‘राठवा नृत्य’ के नाम से प्रसिद्ध है, जो उनकी सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक माना जाता है।

राठवा आदिवासी अपने लोक गीतों और संगीत के माध्यम से पौराणिक कथाओं और जीवन की कहानियों को प्रस्तुत करने के लिए भी जाने जाते हैं। इनकी वेशभूषा, संगीत और नृत्य शैली दर्शकों को सहज ही मंत्रमुग्ध कर देती है।

विश्व प्रसिद्ध है ‘गेर मेला’

राठवा जनजाति के लिए होली सबसे बड़ा और उल्लासपूर्ण पर्व होता है। इसी अवसर पर छोटा उदेपुर जिले में लगने वाला ‘गेर मेला’ विश्व प्रसिद्ध है। इस मेले में प्रस्तुत किए जाने वाले राठवा लोक नृत्य देश-विदेश तक अपनी अलग पहचान बना चुके हैं। राठवा डांस इस मेले का मुख्य आकर्षण होता है।

रोमांच से भर देता है प्रस्तुतीकरण

इस लोक नृत्य में आदिवासी नर्तक-नर्तकियों का समूह लय और ताल में नृत्य करते हुए उमंग और उत्साह के साथ खुशी का प्रदर्शन करता है। नृत्य के दौरान किए जाने वाले साहसिक करतब दर्शकों की सांसें थाम लेते हैं।
जब युवतियां युवकों के कंधों पर खड़े होकर झूमती हैं और युवक गोल घेरा बनाकर संतुलन के साथ घूमते हैं, तो पूरा माहौल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठता है।

पारंपरिक वाद्ययंत्रों की गूंज

राठवा नृत्य में बड़े राम ढोल, छोटे ढोल, शहनाई, कांसे की थाली और ततोड़ी जैसे पारंपरिक वाद्ययंत्रों का उपयोग किया जाता है। इनकी लयबद्ध ध्वनि दर्शकों को स्वतः झूमने पर मजबूर कर देती है।

अनूठी वेशभूषा बनी आकर्षण का केंद्र

राठवा नृत्य की वेशभूषा भी इसकी खास पहचान है। युवतियां लाल ओढ़नी, उबलो घाघरा, लीली अंगरखी धारण कर मोरपंख के साथ रेशमी रूमाल लेकर नृत्य करती हैं। वहीं युवक मोरपंख से बना मुकुट, विशेष कमर पट्टा और धोती पहनते हैं। कलाकार अपने शरीर पर सफेद मिट्टी से विभिन्न आकृतियां बनाकर नृत्य की भव्यता को और बढ़ा देते हैं।

शिल्पग्राम उत्सव में राठवा नृत्य की यह प्रस्तुति दर्शकों के लिए एक यादगार सांस्कृतिक अनुभव बनने जा रही है, जो गुजरात की आदिवासी परंपरा और लोक विरासत को जीवंत रूप में सामने रखेगी।