समाज सहयोग से सफल हुई RSS की शताब्दी यात्रा: दत्तात्रेय होसबाले का बयान

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि संघ की 100 साल की यात्रा समाज के सहयोग और सहभागिता से सफल हुई है। शुरुआती कार्यकर्ताओं के त्याग से लेकर आपातकाल के संघर्षों तक, संघ को हमेशा जनता का समर्थन मिला।

समाज सहयोग से सफल हुई RSS की शताब्दी यात्रा: दत्तात्रेय होसबाले का बयान

समाज सहयोग से संघ शताब्दी यात्रा हुई सफल: दत्तात्रेय होसबाले

नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे कर रहा है। इस अवसर पर सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि संघ की इस शताब्दी यात्रा में समाज का निरंतर सहयोग और सहभागिता सबसे बड़ा आधार रहा है। उन्होंने कहा कि यह यात्रा कई कठिनाइयों और संकटों से अवश्य गुज़री, लेकिन सामान्य जनों का स्नेह और समर्थन ही संघ की शक्ति और प्रेरणा बना।

प्रारंभिक कार्यकर्ताओं का समर्पण

होसबाले ने कहा कि संघ के शुरुआती दिनों में अप्पाजी जोशी जैसे गृहस्थ कार्यकर्ता हों या दादाराव परमार्थ, भाऊराव देवरस, यादवराव जोशी और एकनाथ रानडे जैसे प्रचारक—सभी ने डॉ. हेडगेवार की प्रेरणा से राष्ट्रसेवा को जीवनव्रत मान लिया। उनका तप, त्याग और परिश्रम ही संघ कार्य की नींव बना।

उन्होंने स्वामी विवेकानंद के उस विचार को याद किया जब विदेश में उनसे पूछा गया कि भारत के अनपढ़ लोग उनके विचारों को कैसे समझेंगे। विवेकानंद ने उत्तर दिया था—“जैसे चींटी को शक्कर खोजने के लिए अंग्रेज़ी सीखने की ज़रूरत नहीं होती, वैसे ही मेरे भारतवासी किसी भी सात्विक कार्य को तुरंत पहचान लेंगे।” यह बात संघ कार्य के संदर्भ में भी सत्य सिद्ध हुई।

समाज और परिवारों का योगदान

संघ के कार्य विस्तार में स्वयंसेवकों के परिवारों और समाज की मातृशक्ति का योगदान विशेष रहा। राष्ट्र सेविका समिति की स्थापना से लेकर प्रमिलाताई मेढ़े जैसी अग्रणी महिलाओं की भूमिका ने संघ यात्रा को संपूर्णता दी।

यशवंतराव केलकर, दत्तोपंत ठेंगड़ी, एकनाथ रानडे और दीनदयाल उपाध्याय जैसे स्वयंसेवकों ने समाज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में संगठन खड़े किए, जो आज भी सकारात्मक बदलाव ला रहे हैं।

राष्ट्रहित के मुद्दों पर समर्थन

संघ ने हमेशा राष्ट्रीय हित से जुड़े मुद्दों को उठाया। 1964 में विश्व हिंदू परिषद की स्थापना हो या 1981 के मीनाक्षीपुरम धर्मांतरण प्रकरण के बाद जागरण आंदोलन—इन सबमें समाज और संतों का समर्थन संघ को प्राप्त हुआ।

उड्डुपी में आयोजित विश्व हिंदू सम्मेलन में धर्माचार्यों के साथ मिलकर यह उद्घोष हुआ—“हिंदवः सोदराः सर्वे” (सभी हिंदू भारत माता के पुत्र हैं)। इसी तरह राम जन्मभूमि आंदोलन, गौहत्या बंदी जैसे विषयों पर संत समाज और साधु-संतों का आशीर्वाद सदैव मिला।

आपातकाल और प्रतिबंध के दौर में भी समाज का साथ

स्वतंत्रता के बाद लगे प्रतिबंध हों या आपातकाल का संकट, हर बार समाज और प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने संघ का साथ दिया। इन विपरीत परिस्थितियों में भी मातृशक्ति और परिवारों ने स्वयंसेवकों को संभाला और कार्य को निरंतर आगे बढ़ाया।

शताब्दी वर्ष की नई दिशा

होसबाले ने कहा कि आने वाले समय में संघ घर-घर संपर्क अभियान चलाएगा, ताकि समाज के हर वर्ग तक पहुँचा जा सके। शहरों से लेकर गाँवों तक, हर स्तर पर सहयोग जुटाकर राष्ट्र के सर्वांगीण विकास की दिशा में काम किया जाएगा।

“समाज की सज्जन शक्ति के समन्वित प्रयासों से आने वाली यात्रा और भी सुगम और सफल होगी।” — दत्तात्रेय होसबाले