जनजातीय गौरव वर्ष पखवाड़ा: उदयपुर में वीरांगना कालीबाई पर आधारित कठपुतली नाटिका का प्रभावी मंचन

उदयपुर में जनजातीय गौरव वर्ष पखवाड़ा के तहत वीरांगना कालीबाई के बलिदान पर आधारित कठपुतली नाटिका का प्रभावी मंचन हुआ। 250 से अधिक विद्यार्थियों ने भारतीय लोक कला मण्डल में इस ऐतिहासिक प्रस्तुति को देखा।

जनजातीय गौरव वर्ष पखवाड़ा: उदयपुर में वीरांगना कालीबाई पर आधारित कठपुतली नाटिका का प्रभावी मंचन

जनजातीय गौरव वर्ष पखवाड़ा: ‘कालीबाई’ कठपुतली नाटिका का भावपूर्ण मंचन, 250 से अधिक विद्यार्थियों ने देखा साहस की विरासत

उदयपुर, 14 नवंबर।
भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में मनाए जा रहे जनजातीय गौरव वर्ष पखवाड़े के तहत बुधवार को भारतीय लोक कला मण्डल, टीएडी विभाग और जिला प्रशासन उदयपुर के संयुक्त तत्वावधान में वीरांगना कालीबाई पर आधारित कठपुतली नाटिका का प्रभावी मंचन आयोजित किया गया। भारतीय लोक कला मण्डल स्थित गोविंद कठपुतली प्रेक्षालय में हुई इस प्रस्तुति को उदयपुर जिले के लगभग 250 से अधिक स्कूली छात्र-छात्राओं ने देखा और सराहा। 

कार्यक्रम की शुरुआत भगवान बिरसा मुंडा के चित्र पर माल्यार्पण और दीप प्रज्वलन के साथ हुई। भारतीय लोक कला मण्डल के निदेशक डॉ. लईक हुसैन ने बताया कि यह नाटिका राजस्थान के डूंगरपुर जिले के रास्तापाल गांव की बालिका कालीबाई के बलिदान पर आधारित है, जिसने वर्ष 1947 में शिक्षा की लौ जलाए रखने और अपने अध्यापक सेंगा भाई के प्राण बचाने के लिए अपनी जान की आहुति दे दी थी।

नाटिका में दिखाया गया कि कैसे सामाजिक प्रतिबंधों के बीच कालीबाई की शिक्षा का मार्ग प्रशस्त करने में नाना भाई खांट और उसके अध्यापक सेंगा भाई की महत्वपूर्ण भूमिका रही। नाटिका में ग्रामीण जीवन, शिक्षा विरोधी ताकतों के दबाव, अंग्रेज पुलिस का अत्याचार और अंत में कालीबाई के साहसपूर्ण बलिदान को मार्मिक ढंग से दर्शाया गया। 

सबसे भावुक दृश्य वह रहा जब पुलिस द्वारा सेंगा भाई को जीप से घसीटने का प्रयास किया जाता है और 13 वर्षीय कालीबाई उसी रस्सी को काटकर उनका जीवन बचाने का प्रयास करती है, जिसके बाद पुलिस उसकी गोली मारकर हत्या कर देती है। कालीबाई के बलिदान के बाद आदिवासी समुदाय का आक्रोश, वारी ढोल की थाप और ग्रामीणों का एकजुट होना नाटिका का चरम बिंदु रहा। 

प्रस्तुति के अंत में विद्यार्थी और उपस्थित जनप्रतिनिधि कालीबाई जैसी बाल वीरांगना के साहस, शिक्षा के प्रति समर्पण और अदम्य जज्बे से भावुक हो उठे। भारतीय लोक कला मण्डल की इस पहल को छात्रों में शिक्षा, जागरूकता और आदिवासी इतिहास के प्रति गर्व की भावना जगाने वाला कदम बताया गया।