अमेरिका में सरकारी शटडाउन 2025: वैश्विक अर्थव्यवस्था पर गहराता संकट और असर
अमेरिका में सरकारी शटडाउन 2025 का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर पड़ रहा है। वित्तीय बाजारों में अस्थिरता, निवेशकों का भरोसा डगमगाना और अंतरराष्ट्रीय व्यापार समझौतों पर संकट जैसे हालात बन रहे हैं। जानिए पूरा विश्लेषण।

अमेरिका में सरकारी शटडाउन: वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
शटडाउन क्या है?
अमेरिका में जब कांग्रेस (Congress) और राष्ट्रपति प्रशासन संघीय बजट या फंडिंग बिल पर सहमत नहीं हो पाते, तब सरकारी शटडाउन हो जाता है। इसका मतलब है कि संघीय एजेंसियों, विभागों और सेवाओं के लिए धनराशि का आवंटन रुक जाता है। इस दौरान "गैर-जरूरी" सरकारी कर्मचारी छुट्टी पर भेज दिए जाते हैं (furlough), जबकि "जरूरी" सेवाओं जैसे रक्षा, स्वास्थ्य, और सुरक्षा से जुड़े कर्मचारी बिना वेतन के काम जारी रखते हैं।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
अमेरिका में यह स्थिति कई बार पैदा हो चुकी है। 1976 के बाद से अब तक लगभग 20 बार शटडाउन हो चुका है। इनमें से सबसे लंबा शटडाउन 2018-19 में 35 दिनों तक चला, जब डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन और कांग्रेस के बीच सीमा दीवार (Mexico Border Wall) की फंडिंग पर विवाद हुआ था।
हर शटडाउन ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर अरबों डॉलर का बोझ डाला है और वैश्विक बाजारों में अस्थिरता फैलाई है।
शटडाउन के कारण
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राजनीतिक गतिरोध – आमतौर पर रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स बजट या कर्ज सीमा (Debt Ceiling) पर सहमत नहीं हो पाते।
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कर्ज सीमा संकट – अमेरिका की अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे बड़ी है और उसे निरंतर उधार लेकर सरकारी खर्च चलाना पड़ता है। कर्ज सीमा न बढ़े तो सरकार खर्च नहीं कर पाती।
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बजट प्राथमिकताओं में टकराव – रक्षा बनाम सामाजिक कल्याण, कर सुधार बनाम सब्सिडी जैसी नीतिगत बहसें।
शटडाउन का असर अमेरिका पर
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आर्थिक झटका – सरकारी शटडाउन का सीधा असर अमेरिका की GDP पर पड़ता है। अनुमान है कि हर हफ्ते की बंदी से GDP में 0.1-0.2% तक की गिरावट आती है।
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सरकारी कर्मचारियों पर असर – लाखों कर्मचारी वेतन के बिना घर बैठ जाते हैं या बिना वेतन काम करने को मजबूर होते हैं।
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सार्वजनिक सेवाएं ठप – पासपोर्ट, वीज़ा प्रोसेसिंग, पर्यावरण अनुमोदन, शोध परियोजनाएं आदि रुक जाती हैं।
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निवेशकों का विश्वास डगमगाना – अमेरिकी बॉन्ड मार्केट और स्टॉक मार्केट पर नकारात्मक असर पड़ता है।
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रेटिंग एजेंसियों की प्रतिक्रिया – अगर यह संकट लंबा खिंचता है तो अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियां अमेरिका की क्रेडिट रेटिंग कम कर सकती हैं, जिससे उधार लेना और महंगा हो जाएगा।
वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर
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वित्तीय बाजारों में अस्थिरता – डॉलर की मजबूती/कमजोरी और अमेरिकी स्टॉक्स की गिरावट का असर पूरी दुनिया की स्टॉक मार्केट्स पर दिखता है।
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बॉन्ड मार्केट पर दबाव – अमेरिकी ट्रेजरी बॉन्ड दुनिया के सबसे सुरक्षित निवेश माने जाते हैं। शटडाउन से इन पर भरोसा कम होता है और अंतरराष्ट्रीय निवेशकों में घबराहट फैलती है।
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तेल और कमोडिटी मार्केट – अनिश्चितता की स्थिति में निवेशक सोने जैसे सुरक्षित साधनों में निवेश बढ़ाते हैं। इससे वैश्विक तेल और सोने की कीमतों में उतार-चढ़ाव आता है।
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बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर असर – अमेरिकी सरकारी अनुबंधों पर निर्भर कंपनियों को बड़ा नुकसान होता है, और इसका असर उनकी वैश्विक सप्लाई चेन पर भी पड़ता है।
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विकासशील देशों पर दबाव – अमेरिकी अर्थव्यवस्था में मंदी का असर सीधे वैश्विक मांग पर पड़ता है। इसका सीधा असर उन देशों पर होता है जिनकी अर्थव्यवस्था अमेरिकी आयात पर निर्भर है।
अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक प्रभाव
अमेरिका एक वैश्विक शक्ति है। शटडाउन से न सिर्फ उसकी आंतरिक व्यवस्था प्रभावित होती है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय कूटनीति, रक्षा अनुबंध और विदेशी सहायता कार्यक्रम भी प्रभावित होते हैं। उदाहरण के लिए:
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संयुक्त राष्ट्र (UN) में अमेरिकी फंडिंग में देरी।
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नाटो (NATO) और अन्य रक्षा प्रतिबद्धताओं पर अनिश्चितता।
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वैश्विक व्यापार समझौतों और वार्ताओं में बाधा।
निष्कर्ष
अमेरिकी सरकारी शटडाउन सिर्फ अमेरिका का आंतरिक मुद्दा नहीं है, बल्कि इसका सीधा असर वैश्विक वित्तीय बाजारों, व्यापार, निवेश और राजनीतिक स्थिरता पर पड़ता है। हर बार जब अमेरिका शटडाउन के कगार पर पहुंचता है, पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर "अनिश्चितता का बादल" छा जाता है।