महाराणा कुंभा और “सिकलीगर” नाम की गाथा

The story of Maharana Kumbha and the name “Sikligar”

महाराणा कुंभा और “सिकलीगर” नाम की गाथा

संडे स्पेशल: महाराणा कुंभा और “सिकलीगर” नाम की गाथा ⚔️✨

क्या आप जानते हैं कि “सिकलीगर” असल में कोई जातिगत पहचान नहीं थी, बल्कि एक उपाधि थी?
यह नाम उन कारीगरों को मिला, जो तलवारों और शस्त्रों की धार को चमकाते, पैना करते और युद्ध के लिए तैयार रखते थे।


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नाम का रहस्य ????

“सिकलीगर” शब्द की जड़ें फ़ारसी-तुर्की और स्थानीय बोलियों से जुड़ी मानी जाती हैं—

“सिकल/सिक्का” का अर्थ हुआ धार देना, पैना करना, चमकाना।

“गर” का अर्थ है काम करने वाला।
यानी “सिकलीगर” का सीधा अर्थ हुआ—वह जो शस्त्रों की धार बनाता है।


समय के साथ महाराणा कुंभा ने इसे केवल पेशे की पहचान नहीं, बल्कि सम्मान की उपाधि बना दिया।


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महाराणा कुंभा और उनका साम्राज्य ????

कुंभा (1433–1468 ई.) मेवाड़ के सबसे पराक्रमी शासकों में गिने जाते हैं।

उनका साम्राज्य मेवाड़, मालवा, गुजरात, अजमेर से ग्वालियर सीमा तक फैला हुआ था।

उन्होंने मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी को कई बार पराजित किया—विशेषकर सारंगपुर का युद्ध (1437) ऐतिहासिक रहा।

गुजरात के सुल्तानों से भी संघर्ष किए, वहीं नागौर और अजमेर के मोर्चे पर अपना प्रभुत्व जमाया।

जहां युद्ध संभव न हुआ, वहां संधियाँ कीं और सामरिक ठिकानों पर भरोसेमंद सामंतों व कारीगरों को बसाया।

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सिकलीगर उपाधि कैसे फैली? ????️

कुंभा के ठिकानों और सामरिक अड्डों पर हथियार बनाने और उनकी देखभाल का काम विशेष कारीगरों को सौंपा गया।
इन कारीगरों को उन्होंने “सिकलीगर” की उपाधि दी।
यह उपाधि इतनी प्रतिष्ठित हुई कि धीरे-धीरे यह समाज का स्थायी नाम बन गई।

आज गुजरात, राजस्थान, मालवा, ग्वालियर, यहाँ तक कि दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में भी सिकलीगर वंशज मिलते हैं—जो अब भी उस शाही उपाधि की गवाही देते हैं।


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संडे का निष्कर्ष ☀️

“सिकलीगर” हमें यह याद दिलाता है कि वीरता केवल तलवार चलाने वालों में नहीं, बल्कि तलवार बनाने वालों के हाथों में भी बसती है।
महाराणा कुंभा ने इस कला को सम्मान देकर एक नाम दिया—और वही नाम पीढ़ियों की पहचान बन गया।