करवा चौथ 2025 उदयपुर: पूजा मुहूर्त, चंद्र उदय समय, व्रत कथा और महत्व
करवा चौथ 2025 उदयपुर में शुक्रवार 10 अक्टूबर को मनाया जाएगा। जानें पूजा मुहूर्त, चंद्र उदय समय, व्रत कथा, पूजा विधि और विवाह जीवन में इसका महत्व।

करवा चौथ 2025: उदयपुर में पूजा मुहूर्त, चंद्रोदय समय, व्रत कथा और महत्व
उदयपुर, राजस्थान।
हिंदू धर्म में सुहागिन महिलाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण व्रतों में से एक करवा चौथ इस बार शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा। इस दिन विवाहित स्त्रियां सूर्योदय से लेकर चंद्र उदय तक निर्जला उपवास रखती हैं और चंद्रमा को अर्घ्य देकर पति की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और सुखमय दांपत्य जीवन की कामना करती हैं।
उदयपुर में करवा चौथ 2025 के शुभ समय
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चतुर्थी तिथि आरंभ: 9 अक्टूबर 2025, रात 10:54 बजे
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चतुर्थी तिथि समाप्त: 11 अक्टूबर 2025, सुबह 12:20 बजे
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व्रत आरंभ (सूर्योदय): 10 अक्टूबर 2025, सुबह 06:31 बजे
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करवा चौथ पूजा का शुभ मुहूर्त (उदयपुर): शाम 06:13 बजे से 07:27 बजे तक
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चंद्रमा उदय का समय (उदयपुर): रात 08:38 बजे
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व्रत समाप्ति: चंद्र दर्शन और पूजा के बाद
???? ध्यान दें: चंद्रोदय का समय हर जिले और स्थान पर कुछ मिनट आगे-पीछे हो सकता है।
करवा चौथ का धार्मिक महत्व
करवा चौथ केवल एक व्रत नहीं बल्कि श्रद्धा, प्रेम और विश्वास का पर्व है। माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की पूजा करने से सौभाग्य, स्वास्थ्य और मानसिक शांति मिलती है। स्त्रियां अपने पतियों की लंबी आयु के लिए व्रत करती हैं। वहीं पति भी पत्नी के प्रति प्रेम और आदर जताते हैं।
राजस्थान और विशेषकर मेवाड़ क्षेत्र में यह पर्व अत्यंत उल्लास और पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है। महिलाएं रंग-बिरंगे वस्त्र पहनती हैं, हाथों में मेहंदी रचाती हैं और रात्रि को समूह में व्रत कथा सुनती हैं।
करवा चौथ की पूजा विधि
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सरगी का सेवन (सुबह):
व्रत की शुरुआत सूर्योदय से पहले सास द्वारा दी गई सरगी से होती है। इसमें फल, मिठाई, पकवान और मेवे होते हैं। -
श्रृंगार और संकल्प:
महिलाएं पारंपरिक पोशाक पहनकर (विशेषकर लाल या गुलाबी रंग) श्रृंगार करती हैं और व्रत का संकल्प लेती हैं। -
शाम की पूजा:
शाम को निर्धारित मुहूर्त (06:13 से 07:27 बजे) में मिट्टी या तांबे के करवे में जल, गेहूं और मिठाई रखकर चौथ माता, भगवान शिव, पार्वती, गणेश और कार्तिकेय की पूजा की जाती है। -
करवा चौथ कथा:
पूजा के समय महिलाएं करवा चौथ की व्रत कथा सुनती हैं और करवे का आदान-प्रदान करती हैं। -
चंद्रोदय और व्रत समाप्ति:
जब चंद्रमा रात 08:38 बजे उदित होगा, तब महिलाएं छलनी से पहले चंद्रमा और फिर पति का दर्शन करेंगी।-
चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाएगा।
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पति के हाथ से जल पीकर और फल ग्रहण कर व्रत खोला जाएगा।
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करवा चौथ व्रत कथा
कथा के अनुसार, वीरवती नाम की एक रानी अपने पति की लंबी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत रखती थी। दिनभर निर्जला रहने के कारण शाम होते-होते वह बेहद कमजोर हो गई। उसके भाइयों ने छल से दीपक को छलनी में दिखाकर उसे विश्वास दिलाया कि चंद्रमा निकल आया है। वीरवती ने व्रत तोड़ दिया। परिणामस्वरूप उसके पति की मृत्यु हो गई।
वीरवती ने देवी पार्वती की प्रार्थना की और अपने कठोर तप व भक्ति से उन्हें प्रसन्न किया। देवी ने उसे आशीर्वाद दिया और उसके पति को पुनः जीवन प्राप्त हुआ। तभी से यह व्रत पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है।
ज्योतिषीय दृष्टि से करवा चौथ 2025
इस वर्ष करवा चौथ शुक्रवार के दिन आ रहा है। शुक्रवार का दिन माता लक्ष्मी और प्रेम के कारक ग्रह शुक्र का होता है। यह संयोग दांपत्य जीवन में सामंजस्य, प्रेम और समृद्धि बढ़ाने वाला माना जाता है।
इस दिन चंद्रमा तुला राशि में उदित होगा। तुला राशि संतुलन और सौंदर्य का प्रतीक है, इसलिए इस बार व्रत करने वाली स्त्रियों को मानसिक शांति और वैवाहिक जीवन में सामंजस्य प्राप्त होगा।
सावधानियाँ
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व्रत निर्जला होता है, इसलिए स्वास्थ्य कमजोर हो तो डॉक्टर की सलाह ज़रूर लें।
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गर्भवती और बीमार महिलाएं आवश्यकता पड़ने पर फलाहार कर सकती हैं।
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पूजा सामग्री पहले से तैयार रखें — करवा, दीपक, चावल, रोली, सिंदूर, श्रृंगार सामग्री, मिठाई, फल आदि।
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पूजा में मन की शुद्धता और संकल्प सबसे आवश्यक है।
आधुनिक परिप्रेक्ष्य
आज के समय में करवा चौथ का स्वरूप बदला है। अब पति भी पत्नी के साथ यह व्रत रखते हैं।
शॉपिंग मॉल्स, ज्वेलरी शॉप्स और ब्यूटी पार्लर्स में इस अवसर पर विशेष ऑफ़र आते हैं।
सोशल मीडिया पर महिलाएं अपनी सजधज, मेहंदी और करवा चौथ से जुड़ी तस्वीरें साझा करती हैं।
निष्कर्ष
उदयपुर में करवा चौथ 2025 का पर्व पूरे उल्लास और आस्था के साथ मनाया जाएगा। इस वर्ष विशेष संयोग है क्योंकि शुक्रवार के दिन चंद्रमा तुला राशि में उदित होगा।
रात्रि 08:38 बजे चंद्रमा दर्शन के साथ जब महिलाएं अपने व्रत का समापन करेंगी, तो वह क्षण प्रेम, विश्वास और समर्पण का जीवंत प्रतीक बन जाएगा।